شعر «سرو چمان من چرا میل چمن نمیکند»، که در غزل شماره 192 حافظ شیرازی آمده است، یکی از نمونههای برجسته غزلهای این شاعر بزرگ است که در آن، حافظ با استفاده از تصویرسازیهای زیبا و رمزآلود، مفاهیم عمیق عاطفی و فلسفی را بیان میکند. این غزل در وزن رجز مثمن مطوی مخبون (مفتعلن مفاعلن مفتعلن مفاعلن) سروده شده است که در آن، شاعر به پرسشهایی درباره عشق، زیبایی و جدایی پرداخته و از طریق این پرسشها، به تحلیل وضعیت روحی و عاطفی خود میپردازد. در این مطلب بعضی از ابیات غزل را در جدول به صورت تقطیع شده مثال زده ایم تا درک بهتری از وزن (مفتعلن مفاعلن مفتعلن مفاعلن) در شعر بیابیم. برای مطالعه قواعد تقطیع شعر و اختیارات شاعری می توانید از لینکی که در انتهای مطلب قرار داده شده است استفاده نمایید.
مف | ت | ع | لن | م | فا | ع | لن | مف | ت | ع | لن | م | فا | ع | لن |
سر | و | چ | ما | ن | من | چ | را | می | ل | چ | من | ن | می | ک | ند |
هم | د | م | گل | ن | می | ش | ود | یا | د | س | من | ن | می | ک | ند |
دی | گ | له | ای | ز | طر | ره | اش | کر | د | م | از | س | ر | ف | سوس |
گفت | - | که | این | سی | یا | ه | کج | گوش | - | ب | من | ن | می | ک | ند |
تا | د | ل | هر | ز | گر | د | من | رفت | - | ب | چی | ن | زل | ف | او |
زان | س | ف | ر | د | را | ز | خود | عز | م | و | طن | ن | می | ک | ند |
پی | ش | ک | ما | ن | اب | رو | یش | لا | به | ه | می | ک | نم | و | لی |
گوش | - | ک | شی | ده | است | از | آن | گوش | - | ب | من | ن | می | ک | ند |